Made in Banaras. Made by nagaripracharinisabha.

नागरीप्रचारिणी सभा

नागरी प्रचारिणी सभा

आर्यभाषा पुस्तकालय

सभा का आर्यभाषा पुस्तकालय देश में हिंदी पुस्तकों का सबसे बड़ा पुस्तकालय है । इसकी मुख्य विशेषता यह है कि आरंभिक काल की प्रायः समस्त मुद्रित पुस्तकें तथा प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ यहाँ सुरक्षित हैं तथा वे सार्वजनिक उपयोग के लिये सर्वदा अध्येताओं को सुलभ रहती हैं । साथ ही, अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रंथों का भी विशाल संग्रह है जिसका अवलोकन हिंदी में शोधकार्य के लिये अनिवार्य है ।

स्थापना

पुस्तकालय का श्रीगणेश नागरीप्रचारिणी सभा ने अपनी स्थापना के प्रथम वर्ष (स. 1950) में ही कर दिया था । दूसरे वर्ष अर्थात् संवत् 1951 वि. से यह पुस्तकालय नियमित रूप से सभा के सभासदों के उपयोग में आने लगा । उस समय इसका नाम ‘नागरी भंडार’ था । संवत् 1953 में स्व. श्री गदाधर सिंह का ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ सभा के ‘नागरी भंडार’ के साथ मिलाया गया और इस संयुक्त संग्रह का नाम भी ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ रखा गया । तब से यह पुस्तकालय इसी नाम से हिंदी की सेवा करता आया है । इस पुस्तकालय की संपन्नता और सर्वश्रेष्ठता का श्रेय मुख्यतः हिंदी के ग्रंथ-प्रकाशकों, लेखकों, हिंदीप्रेमियों तथा राज्य सरकारों को है जिन्होंने सदा से ग्रंथों, पत्र-पत्रिकाओं तथा द्रव्य से इसकी सहायता की है । इस समय पुस्तकालय में कुल मिलाकर 4000 से अधिक पुस्तकें हैं जिनमें हिंदी के मुद्रित ग्रंथों के अतिरिक्त संस्कृत तथा अँगरेजी के लगभग 2000 आकर ग्रंथ एवं लगभग 4000 दुष्प्राप्य और अलभ्य हस्तलिखित ग्रंथ हैं ।

पुस्तकालय के विभिन्न विभाग

समय-समय पर इस पुस्तकालय को मान्य विद्वानों के निजी विशिष्ट संग्रह दान में मिले जिनमें मुद्रित एवं अलभ्य हस्तलिखित ग्रंथ हैं । इनसे पुस्तकालय की उपयोगिता और मूल्य बहुत अधिक बढ़ गया है । ये विभागीय संग्रह निम्नलिखित हैं—

  1. श्री जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ संग्रह ।
  2. श्री महावीरप्रसाद द्विवेदी संग्रह ।
  3. श्री डा. हीरानंद शास्त्री संग्रह ।
  4. श्री मयाशंकर याज्ञिक संग्रह ।
  5. श्री श्रीशचंद्र शर्मा संग्रह ।

(1) आर्यभाषा पुस्तकालय—अपनी स्थापना के 3 वर्षों के बाद सन् 1896 में सभा ने इस पुस्तकालय की स्थापना की जो हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय है । जैसा कि पीछे कहा गया है कि हिंदी के पुजारी को इस हिंदी मंदिर में आए बिना उसका पूज्यपूजकत्व भाव पूरा नहीं होगा ठीक इसी प्रकार कोई भी हिंदी शोधार्थी अपना शोधग्रंथ उपस्थित करने के लिये इस पुस्तकालय का लाभ लिए बिना अपने उद्देश्य में सफल हो जायगा, यह संभव नहीं है । इसलिये आज भी इस पुस्तकालय का लाभ उठाने के लिये देश के विभिन्न विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के अतिरिक्त विदेश के विश्वविद्यालय के हिंदी अनुसंधित्सुओं का इसमें बराबर आगमन होता आ रहा है । दुर्लभ हस्तलेखों का भांडार यहाँ आज भी सुरक्षित है ।